फिर सवाल यह उठता है कि मुर्गी की जगह बाज़ को क्यों नहीं दिखाया गया जो
नागरिक सेना के प्रतीक के रूप में ज़्यादा उपयुक्त होता. शायद रेम्ब्रेंट
कैप्टन के नाम का या उसकी ख़ुराक का मज़ाक बनाना चाह रहे थे. मज़े की बात
यह है कि प्रतीक का चेहरा रेम्ब्रेंट की सास्किया जैसा ही है.
मिथक के विपरीत रेम्ब्रेंट को लगातार बहुत बढ़िया काम मिलते रहे.
अब
आइए उस रक्षक पर नज़र डालें जिसकी बन्दूक से अचानक गोली चल गई और लगभग
लेफ्टिनेंट का सिर उड़ाते-उड़ाते रह गया. हमें उसका चेहरा दिखाई नहीं देता.
वह भी कम्पनी में होते हुए कंपनी का हिस्सा नहीं लगता. शायद वह भी कंपनी
का इतिहास दिखा रहा हो.
हालांकि, कैप्टन और उसके लेफ्टिनेंट को कंपनी के मुखिया के रूप में अच्छी तरह दिखाया गया है, लेकिन रक्षकों की वेशभूषा
समसामयिक दृष्टि से काफ़ी साधारण दिखती है. रेम्ब्रेंट ने जब तक अपनी यह
चित्रकारी पूर्ण की तब तक बैनिंग कॉक और उसके आदमियों की उपयोगिता काफ़ी कम हो गई थी क्योंकि स्पेन से शांति स्थापित हो चुकी थी.
लेकिन रेम्ब्रेंट की चिन्ता केवल नागरिक गर्व तक ही सीमित नहीं थी. वह तो एक नाटक को कैनवस पर उभारना चाहते थे जिसमें एक साथ गम्भीरता और हास्य दोनों हो. इसी उद्देश्य से हमें कैप्टन की गंभीरता और चित्र में बाकी अन्य लोगों का हास्य दिखाई देता है. इससे पूर्व किसी ने भी नागरिक सेना का कोई
भी ऐसा चित्र नहीं बनाया था.
लेकिन 19वीं सदी में इस चित्रकार को एक बाहरी बताने की कोशिश में पैदा हुए मिथक के विपरीत रेम्ब्रेंट को लगातार बहुत बढ़िया काम मिलते रहे.
रेम्ब्रेंट की समस्याओं में उस सदी के
उत्तरार्ध में दो बातों से बढ़ावा मिला. एक तो वह बेतहाशा ख़र्च करते थे, दूसरा रंगों के साथ उनका रिश्ता बहुत गंभीर नहीं था. उनकी शैली फ़ैशन से
बाहर जा रही थी.
अब तो रेम्ब्रेंट के पूर्व शिष्य गैरिट डू की
चित्रकारी लोगों को अधिक पसंदआने लगी थी. इस वजह से रेम्ब्रेंट को
इम्प्रेश्निस्ट यानी संस्कारवादियों/प्रभाववादियों के उदय होने तक
प्रतीक्षा करनी पड़ी. उसके बाद फिर से रेम्ब्रेंट का नाम हुआ.
जहां तक द नाइट वॉच का सवाल है, तो उसे यह नाम 1790 के दशक में दिया गया, जब इस
चित्र का वार्निश थोड़ा गहरा और मैला हो गया जिससे इसमें रात्रि की कालिमा
दिखने लगी.
इससे पहले इसे बड़े नीरस नामों से पुकारा जाता था जैसे द
मिलीशिया कंपनी ऑफ डिस्ट्रिक्ट II अंडर द कमांड ऑफ कैप्टन फ्रैंस बैनिंग कॉक, या द शूटिंग कंपनी ऑफ फ्रैंस बैनिंग कॉक एंड विलेम वॉन राइटेनबर्च.
1946 में इसकी गंदगी साफ़ होने के बाद भी इसका रहस्य पहले जैसा ही है.
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