Friday, August 10, 2018

मैंने सड़क पर मरे कुत्ते को देख कर नशा करना छोड़ दिया

मैं अपने डेढ़ साल के बेटे के सामने ब्राउन शुगर लिया करता था. यहां तक कि मैं उसके नाम पर लोगों से भीख में पैसे मांगा करता था."
कभी ड्रग्स के आदी रहे तुषार नाथु उन दिनों में खो गए जब वो इसकी लत में डूबे हुए थे.
18 साल की उम्र में तुषार को ड्रग्स की लत लगी थी और वो चरस, भांग, अफ़ीम, गांजा, ब्राउन शुगर, हर तरह का नशा किया करते थे.
वो बताते हैं, "आख़िर में मेरी मां ने आत्महत्या की कोशिश की. मेरी पत्नी की शिकायत पर अंतिम उपाय के रूप में मुझे जेल में भी रखा गया था."
उन्हें मानसिक रोगियों के अस्पताल भेजा गया और पुनर्वास केंद्र में भी रखा गया, लेकिन बाहर निकलते ही वो एक बार फिर नशे की जाल में जकड़ गए.
"अड़ियल प्रकृति और अस्थिर रवैये के कारण मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकता, मैं पूरी तरह से इसका आदी हो चुका हूं."
ड्रग्स की लत से जुड़ी अपने विचारों पर जब एक महिला युवा समाजसेवी ने हमें बताया तो हम नागपुर के एक पुनर्वास केंद्र में तुषार से मिले.
BBCShe कार्यक्रम में चर्चा के दौरान इस महिला समाजसेवी ने युवाओं में ड्रग्स की लत विषय पर चिंता व्यक्त की और कहा कि मीडिया को इस मुद्दे पर और अधिक रिपोर्ट करने की ज़रूरत है.
भारत में पंजाब के युवाओं के ड्रग्स की लत की चर्चा इतनी हुई कि बॉलीवुड में उस पर फ़िल्म तक बन गई.
लेकिन महाराष्ट्र के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं.
वास्तव में, ड्रग्स से जुड़ी आत्महत्याओं की सूची में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है.
2014 में भारत में ड्रग्स से जुड़ी 3,647 मामले सामने आए, इनमें से अकेले महाराष्ट्र में 1,372 आत्महत्याएं हुईं.
552 मामलों के साथ तमिलनाडु दूसरे, 475 आत्महत्याओं के साथ केरल तीसरे और 38 के साथ पंजाब चौथे स्थान पर रहा.
पिछले साल जुलाई में, नेशनल क्राइम ब्यूरो (एनसीआरबी) के इन आंकड़ों को देश के सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री विजय सांपला ने राज्यसभा में सदन के पटल पर रखा.
इसके अनुसार, देश में की गई 37 फ़ीसदी आत्महत्याओं की रिपोर्ट महाराष्ट्र दर्ज की गईं.
समाजसेवी और सलाहकारों के अनुसार देश में लोग कई तरह की नशीली चीज़ों के आदी हैं- इनमें भांग, गांजा, चरस, अफ़ीम, ब्राउन शुगर, तारपीन जैसी रासायनिक वस्तुएं, वाइटनर और यहां तक कि नेल पॉलिश और पेट्रोल जैसी चीज़ों की लत शामिल हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से कई ड्रग्स का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि वे शराब की तरह गंध नहीं छोड़ते.
महिलाओं में ऐसी किसी लत की सीमाओं का पता लगाना और भी मुश्किल है क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे मामलों की रिपोर्ट नहीं होती.
मुक्तांगण पुनर्वास केंद्र की निदेशक मुक्ता पुणताम्बेकर ने इसके मूल कारणों की ओर इशारा किया.
वो कहती हैं, "महिलाओं का ड्रग्स लेने की आदत को कलंक के रूप में देखा जाता है. लोग इसे छिपाने की कोशिश करते हैं और उन्हें डॉक्टरों के पास नहीं ले जाते."
नागपुर के मेडिकल मनोवैज्ञानिक और सलाहकार डॉ. स्वाति धर्माधिकारी कहती हैं, "महिलाओं को पुरुषों की तरह इलाज नहीं मिलता. महिलाओं के लिए बहुत ही कम पुनर्वास केंद्र हैं और वो आसानी से शोषण की शिकार हो जाती हैं."
महाराष्ट्र में सरकारी सहायता से चलने वाले पुनर्वास केंद्रों की संख्या सबसे अधिक है.
भारत के कुल 435 ड्रग्स पुनर्वास केंद्रों में से 69 महाराष्ट्र में हैं. इनमें से केवल कुछ ही महिलाओं के लिए हैं.
मुक्तांगण के क्षेत्रीय संयोजक संजय भगत सवाल करते हैं, "अगर कोई समाजसेवी किसी ड्रग्स लेने वाली महिला की पहचान करता है, तो वो उसे कहां ले जाए."
हालांकि केवल महिलाओं के लिए केंद्र बनाना भी मुश्किल काम है क्योंकि प्रशिक्षित महिलाओं की कमी है.
2009 में मुक्तांगण ने महिलाओं के लिए 15 बिस्तरों वाले केंद्र 'निशिगन्ध' की शुरुआत की थी.
मुक्ता पुणतांबेकर कहती हैं, "यहां सभी स्टाफ महिलाएं हैं जिससे महिला मरीजों को अजीब न लगे."
वो कहती हैं, "हमारे यहां अपने पिता, पति और बेटों की नशे की लत से बुरी तरह प्रभावित महिलाओं के लिए एक सपोर्ट ग्रुप है. हम उन्हें यहां पेशेवर डॉक्टरों और सलाहकारों की मदद से मरीजों की देखभाल करने का प्रशिक्षण देते हैं. और वे डॉक्टरों और सलाहकारों की सहायक के रूप में यहां काम करती हैं."
इस सम्मिलित प्रयास से नशे की लत से मुक्ति पा चुकी कुछ महिलाओं को नौकरी का एक अवसर भी मिलता है.
लेकिन वास्तविक समस्या यह है कि कितनी संख्या में महिलाएं ड्रग्स की समस्या से पीड़ित हैं इसकी कोई व्यापक जानकारी उपलब्ध नहीं है. बाद से भारत में ड्रग्स की लत के जुड़ा कोई व्यापक सर्वेक्षण नहीं है.
2016 में केंद्र सरकार ने देश में "ड्रग्स की लत के फैलाव, पैटर्न और ट्रेंड पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण' की घोषणा भी की. इसके दायरे में 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सभी महिलाएं और ट्रांसजेंडर सभी आते हैं, जिनकी संख्या पिछले सर्वे में नगण्य है.
इसके रिपोर्ट की इसी साल अक्तूबर में आने की संभावना है.
राष्ट्रीय सर्वे परियोजना के लिए डेटा संग्रह कर रही इकाई का नेतृत्व कर रहे मुक्तगण के संजय भगत कहते हैं, "लेकिन इसके नतीज विशेषज्ञों को भी परेशान कर रहे हैं."
वो कहते हैं, "अब तक हमने जो मिला वो बहुत ही विचलित करने वाला है. यह बहुत बड़ी जटिल समस्या के छोटे हिस्से के जितना है. ड्रग्स की लत वालों की संख्या बढ़ रही है और बड़ी संख्या में लोग कम उम्र में इसके आदी होते जा रहे हैं."
जब इसकी अंतिम रिपोर्ट आएगी तभी हम भारत में इस समस्या की वास्तविक चिंताजनक स्थिति के बारे में जान सकेंगे.
मुक्ता कहती हैं, "इसका सामना करने का एकमात्र तरीका यह है कि हम लत की समस्या के बारे में जागरूकता पैदा करें और लोगों को इसके खतरे से दूर करने की कोशिश करें."

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