Thursday, November 15, 2018

شغل ليبرمان منصب وزير الخارجيه في حكومتين برئاسة نتنياهو

قتل خاشقجي، وهو منتقد لبعض سياسات الحكومة السعودية، في مقر القنصلية السعودية في اسطنبول في الثاني من الشهر الماضي، في عملية يقول الرئيس التركي، رجب طيب اردوغان، إنها جاءت بأمر من "المستويات العليا" في الحكومة السعودية.
وقال أردوغان الثلاثاء للصحفيين، على متن طائرة وهي في طريق العودة من زيارة إلى فرنسا، إنه ناقش مقتل خاشقجي مع زعماء الولايات المتحدة وفرنسا وألمانيا على العشاء في باريس.
واضاف "اعطينا التسجيلات الخاصة بعملية القتل هذه لجميع من طلبها منا. لم تخف مؤسساتنا الاستخباراتية شيئا. استمع إليها جميع من أرادها بما في ذلك السعودية والولايات المتحدة وفرنسا وكندا وألمانيا وبريطانيا".
وشدد أردوغان على القول إنه من الواضح أن عملية القتل كانت متعمدة ومخطط لها وإن الأمر بها جاء من المستويات العليا في السلطات السعودية، ولكنه لا يعتقد أن الأمر جاء من الملك سلمان بن عبد العزيز، الذي يكن له "احتراما لا حدود له".
ولم يكشف أردوغان عن محتوى التسجيلات، ولكن مصادر مطلعة قالت لوكالة رويترز للأنباء إن لدى تركيا عدة تسجيلات، يتعلق أحدها بعملية القتل ذاتها ومحادثات قبل العملية كشفت عنها تركيا لاحقا.
وخلصت تركيا بناء على التسجيلات إلى أن قتل خاشقجي كان متعمدا، على الرغم من نفي السعودية الأولى بأي علم أو ضلوع في الأمر.
وأثارمقتل خاشقجي غضبا دوليا ومطالبات للسعودية، أكبر مصدر للنفط في العالم، والحليف الرئيسي لواشنطن، باتخاذ إجراءات ملموسة لتوضيح ملابسات هذه القضية. عد أفيغدور ليبرمان، زعيم حزب "اسرائيل بيتنا" اليميني المتطرف، واحداً من أكثر الساسة الاسرائيليين شهرة وإثارة للجدل.
في مايو/أيار 2016 عُين ليبرمان وزيرا للدفاع في حكومة رئيس الوزراء بنيامين نتنياهو بعد موافقته على الانضمام للائتلاف الحاكم. واستقال ليبرمان من منصبه في نوفمبر/تشرين الثاني 2018، احتجاجا على قبول هدنة لإنهاء يومين من القتال مع الفصائل الفلسطينية في قطاع غزة.
ولم يلق تعينه كوزير للدفاع استحسان الجميع، واستقال موشيه يعلون، العضو البارز في حزب ليكود الذي يتزعمه نتنياهو، من العمل السياسي عند تعيين ليبرمان وزيرا للدفاع، قائلا إن الحكومة يتم الاستيلاء عليها من قبل "عناصر متطرفة خطرة".
وأصبح ليبرمان وزيراً لخارجية إسرائيل ونائبا لرئيس الوزراء عام 2009، بعد أن قاد حزبه للفوز بثالث أكبر كتلة برلمانية في الكنيست، وانضم إلى الائتلاف الحكومي الذي قاده حزب الليكود حينذاك.السابق عام 1
وعمل ليبرمان حارسا للأمن بأحد الملاهي الليلية في مولدوفا وهو دون العشرين، ثم انتقل للعمل في أذربيجان، قبل أن يهاجر إلى إسرائيل عام 1978.
وبعد وصوله إسرائيل خدم ليبرمان في الجيش الإسرائيلي، وحصل على درجة جامعية في العلوم الاجتماعية من الجامعة العبرية في القدس.
وأصبح ليبرمان ناشطا في مجال السياسة الطلابية وبدأ حياته السياسية في حزب الليكود، حيث عمل مديرا عاما للحزب ما بين عامي 1993 و 1996، ثم عمل مديرا لمكتب رئيس الوزراء بنيامين نتنياهو لمدة عام، خلال الفترة الأولى التي قضاها نتنياهو في رئاسة الوزراء.
ثم غادر ليبرمان حزب الليكود وأسس حزب إسرائيل بيتنا عام 1999، والذي أصبح يتمتع بشعبية بين نحو مليون مهاجر يهودي روسي إلى أسرائيل جاؤوا إلى إسرائيل بعد سقوط الاتحاد السوفيتي السابق.
وفاز في أول انتخابات يخوضها الحزب عام 1999 بأربعة مقاعد في الكنيست.
وعمل ليبرمان وزير للبنية التحتية ما بين عامي 1999 و 2002، ثم وزيراً للنقل والمواصلات بين عامي 2003 و 2004.
لكن ليبرمان طرد من الائتلاف الحاكم عام 2004، بعدما عارض خطة رئيس الوزراء حينها أرييل شارون للانسحاب أحادي الجانب من قطاع غزة، والتي نفذت في صيف عام 2005.
وأصبح ليبرمان لاعبا رئيسيا في السياسة الإسرائيلية منذ مارس/ آذار 2006، حينما فاز حزبه بـ 11 مقعدا في الكنيست.
ومهد ذلك الطريق أمامه ليصبح نائبا لرئيس الوزراء، ووزيرا للشؤون الاستراتيجية في حكومة إيهود أولمرت، التي قادها حزب كاديما.
وفي عام 2009 قاد ليبرمان حزب إسرائيل بيتنا ليفوز بثالث أكبر كتلة برلمانية، ليحل في ذلك محل حزب العمل.
ولأنه بات متحكما في 15 مقعدا في الكنيست فقد أصبح بمثابة "صانع الملوك"، وعرقل ليبرمان جهود حزب كاديما صاحب النصيب الأكبر في الكنيست لتشكيل ائتلاف حكومي، وأعلن بدلا من ذلك تأييده لحزب الليكود وزعيمه نتنياهو. وفي مقابل ذلك حصل ليبرمان على منصبي وزير الخارجية ونائب رئيس الوزراء

Friday, October 5, 2018

ग्राउंड रिपोर्ट: गंगा किनारे उपवास कर रही महिला के साथ बलात्कार

पटना के बाढ़ प्रखंड से गुज़रने वाले एनएच-31 से महज़ ढाई सौ मीटर की दूरी पर स्थित है जलगोविंद गाँव जिसके एक घाट पर स्नान के लिए आई महिला के साथ दो लोगों ने बलात्कार किया.
इतना ही नहीं, उन्होंने इस बलात्कार का वीडियो भी सोशल मीडिया पर डाला.
जलगोविंद गंगा के किनारे पर बसा हुआ गाँव है. गंगा का घाट गाँव से क़रीब सौ मीटर दूर है. इस घाट पर दहयौरा और जलगोविंद गाँव की महिलायें छठ, तुलसी पूजा, जितिया से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक, लगभग सभी पर्वों पर स्नान करने आती हैं.
घाट पर सेमल का एक बड़ा पेड़ है जो उस इलाक़े के गंगा घाटों में से जलगोविंद घाट को एक अलग पहचान देता है.
वहीं एक पीपल का पेड़ भी है जिसके तने परअभी तक सिंदूर और रोली लिपटे हुए हैं. कुछ लोग इस पेड़ की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि गाँव की महिलाओं ने यहीं जितिया का व्रत किया था. बिहार में महिलाएं पुत्र की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं.
गाँव के इतने क़रीब और इतने व्यस्त रहने वाले घाट पर ऐसा हुआ और किसी ने ये सब होते नहीं देखा? बुधवार दोपहर जलगोविंद घाट पर अपनी भैंसें चराने आए गाँव के ही प्रदीप राय इस सवाल का जवाब देने के लिए पहले तो राज़ी हुए. लेकिन कैमरा निकालते ही उन्होंने कुछ बोलने से मना कर दिया.
उन्होंने कहा, "ऐसे पूछना है तो पूछिए, भले लिख लीजिए. हम सारी बात बताएंगे. लेकिन हमारा फ़ोटो मत लीजिए. हमको इन सबमें मत जोड़िए."
प्रदीप से जब हमने पूछा कि आप तो रोज़ अपनी भैंसों को लेकर चराने आते हैं, क्या उस दिन नहीं आए थे?
इस पर गंगा में नहा रही अपनी भैंसों की ओर इशारा करते हुए प्रदीप राय ने कहा, "नहीं, हम नहीं थे. लेकिन वहाँ जहाँ भैंसें अभी नहा रही हैं, वहीं घटना घटी थी. वो होना था, हो गया. लेकिन उससे कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ा. उसके बाद भी यहाँ पूजा हुई. देखिए तुलसी जी की जड़ पर कितने फूल चढ़े हैं."
प्रदीप से कुछ देर ही बात हुई थी कि गाँव के कुछ और लोग भी खेती के काम से घाट के क़रीब आ गए. इनमें से कुछ लोग हमारे पास आए.
गाँव के लोग इतने धार्मिक हैं, घाट पर इतने लोग पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं. बावजूद इसके, ये हो कैसे गया? इसका जवाब लोगों के पास नहीं है.
उसी घाट पर स्नान और‌ पूजा के लिए गाँव की सारी महिलाएँ भी आती हैं और घाट पर कपड़ा बदलने के लिए कोई इंतज़ाम नहीं है.
जलगोविंद घाट पर गाँव वालों से हमारी बातचीत जारी थी. इसी दौरान किसी ने घाट के ऊपर जहाँ सेमल की जड़ें ज़मीन से निकली दिखाई दे रही थीं, उस ओर इशारा करते हुए कहा कि "देखिए, वो लोग वहीं बैठे थे. जहाँ देशी शराब का पाउच दिख रहा है. कांड करने वाला लड़का लोग भी तो गाँव का ही था‌. यहीं आकर शराब पी रहा था तो वो नहाने आ गई. नशा में कहाँ किसी को ग़लत-सही दिखता है."
शराबबंदी वाले राज्य बिहार में, ज़मीन पर पड़ा पाउच झारखंड में बने देशी शराब का था. ताश के पत्ते, कागज़ पर चखने के बतौर नमक मिर्च और चारों तरफ गुटखे की पीक थी.
गाँव वालों के अनुसार महिला के साथ बलात्कार करने वाले नशे में थे.
मगर जब मामले की पड़ताल कर रही पटना पुलिस के एसएसपी मनु महाराज से पूछा गया तो उन्होंने गिरफ़्तार लोगों के नशे में होने की बात पर टिप्पणी नहीं की.
उन्होंने कहा, "अभी तक शराब पीने की बात सामने नहीं आई है. पटना पुलिस मामले के हर एक पहलू पर अनुसंधान कर रही है. अगर घटनास्थल पर देशी शराब के पाउच मिले हैं और अभियुक्तों की मेडिकल रिपोर्ट में ये बात सामने आती है, तो ये कहा जा सकता है कि शराब के नशे में उन्होंने ऐसा किया."
जितने भी गाँव वालों ने बीबीसी से बात की, सभी ने कहा कि उन्हें घटना की जानकारी दो दिन बाद यानी मंगलवार को मिली.
वो भी तब जब पुलिस की टीम अभियुक्तों की पहचान करने के लिए गाँव में आई.
पुलिस के पास भी पीड़ित महिला या उसके परिवार वाले शिकायत लेकर केस दर्ज कराने नहीं गए थे, बल्कि वायरल वीडियो का क्लिप बाढ़ के थाना प्रभारी अबरार अहमद ख़ाँ के पास पहुँचा था.
इस मामले की जाँच कर रहे पुलिस इंस्पेक्टर अबरार कहते हैं, "हम दोनों अभियुक्तों से पूछताछ कर रहे हैं. अभी तक की पड़ताल में ये बात सामने आई है कि दूसरा अभियुक्त विशाल उस वीडियो को रिकॉर्ड कर रहा था. उसी ने वीडियो वायरल किया. गाँव के लोगों के ज़रिए ही 2 अक्टूबर की दोपहर को पुलिस को मालूम चला कि वीडियो में दिख रहा घटनास्थल जलगोविंद घाट है.
वीडियो में महिला के साथ बलात्कार करने वाले की पहचान शिव पूजन महतो के तौर पर हुई है. पुलिस जब गाँव पहुँची और लोगों की पहचान कराई गई, तो मामले का पता चला और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी हो सकी."
पुलिस की जाँच में ये बात स्पष्ट हो चुकी है कि घटना रविवार सुबह की है लेकिन इसकी रिपोर्ट मंगलवार को दर्ज की गई.
वो भी पीड़िता ने ख़ुद शिक़ायत नहीं की बल्कि पुलिस ने वीडियो आने के बाद ख़ुद मामला दर्ज किया. लेकिन ऐसा क्यों हुआ?
पीड़ित महिला के पति दिल्ली में काम करते हैं. वो अपनी बोटियों और एक बेटे के साथ गाँव में रहकर घर संभालती हैं.
जलगोविंद गाँव के महतो बहुल मोहल्ले में पीड़िता का घर है. घर के किवाड़ बंद थे. लेकिन दो-तीन बार खटखटाने पर एक छोटी बच्ची ने दरवाज़ा खोला.
ये पीड़िता की बेटी थी जो आठवीं कक्षा में पढ़ती है. उसने पूछने पर बताया कि माँ और बड़ी बहन पुलिस वालों के साथ गए हैं. वो छोटे भाई के साथ घर में है.
पीड़िता का बेटा अभी काफ़ी छोटा है. उनकी बेटी ने बताया, "जिस दिन घटना हुई थी, उसी दिन हम लोगों को धमकी दी गई थी कि अगर ज़ुबान खोली तो वो हमें मार देंगे, लेकिन अब तो सब कुछ बाहर आ गया है. अब इसके बाद क्या बोलें. हम लोग डर की वजह से किसी से कुछ नहीं कह रहे थे."

Monday, September 24, 2018

रणवीर के साथ काम बेहतरीन अनुभव : कृति

मुंबई (एजेंसियां): अभिनेत्री कृति खरबंदा का कहना है कि रणवीर सिंह के साथ काम करना उनके लिये बेहतरीन अनुभव रहा है। कृति खरबंदा की हाल ही में फिल्म ‘यमला पगला दीवाना : फिर से ‘रिलीज़ हुई थी जो बॉक्स ऑफिस पर खास कमाल नहीं दिखा सकी। इसके पहले कृति खरबंदा ने ‘शादी में ज़रूर आना’ और ‘गेस्ट इन लंदन’ में काम किया था। कृति इन दिनों साजिद नाडियाडवाला की फिल्म ‘हाउसफुल-4’ में काम कर रही हैं।
कृति खरबंदा अब रणवीर सिंह के साथ स्क्रीन स्पेस शेयर करती दिखेंगी। कृति विज्ञापन फिल्म में रणवीर के साथ नजर आयेंगी। कृति और रणवीर जल्द ही एक पेंट बनाने वाली कंपनी के विज्ञापन में साथ नज़र आएंगे।जाते-जाते मानसून ने हिमाचल समेत कुछ अन्य राज्यों में जो उग्र तेवर दिखाये हैं, उसने जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है। हिमाचल के दस जिले बाढ़ की चपेट में हैं। कई जगह बादल फटने, लोगों के बहने, मवेशियों के डूबने तथा बस-ट्रक बहने के दृश्य रोंगटे खड़े करते रहे हैं। उफनती नदियां, दरकते पहाड़ और बेमौसमी बर्फबारी ने पहाड़ों में विकास के नजरिये को भी बदलने की नसीहत दी है। पश्चिमी विक्षोभ से मौसम में आये बदलाव के चलते ठंड ने समय से पहले दस्तक दे दी है, जो फसलों व फलों की पैदावार के लिए खासी नुकसानदायक है। वैसे तो शासन-प्रशासन व एनडीआरएफ की टीमें राहत तथा बचाव के कार्यों में जुटी हैं मगर पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति के चलते मनुष्य कुदरत के रौद्र रूप के सामने लाचार ही नजर आता है। कहीं न कहीं भारत ही नहीं पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग का नकारात्मक असर नजर आने लगा है। बेमौसम बारिश, बारिश की तीव्रता, बाढ़, भूस्खलन, बादल फटने, सूखा व जंगलों में आग जैसी घटनाएं आम हो गई हैं, जो मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न पर्यावरणीय असंतुलन की ओर इशारा करती हैं।
नि:संदेह ऐसे हालात में जरूरी है कि आपदा प्रबंधन की दिशा में विस्तार व विकास को प्राथमिकता दी जाये। दरअसल, ये तमाम प्राकृतिक आपदाएं मौसम के अनुरूप न होकर वर्षपर्यंत चलती रहती हैं। एेसे में आपदा प्रबंधन को नये सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है।  इसमें जितनी भूमिका सरकार की हो सकती है, उतनी भूमिका समाज की भी है। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। आपदा प्रबंधन को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। सरकार हर व्यक्ति की मदद नहीं कर सकती। जैसा कि पिछले दिनों केरल में एनडीआरएफ व प्रशासन के साथ तमाम सामाजिक संगठनों और आम लोगों ने रचनात्मक भूमिका निभाई। ये आपदायें वैश्विक समस्या है अत: इसके नियंत्रण के लिए विश्व के उन्नत ज्ञान को हासिल करके आपदा प्रबंधन को और कारगर बनाया जाना चाहिए। बचाव, सुरक्षा व प्रबंधन के साथ स्कूली छात्र-छात्राओं को ऐसी चुनौतियों के मुकाबले के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाये। जैसा कि जापान के स्कूल में बच्चों को भूकंप से मुकाबले का प्रशिक्षण दिया जाता है। सही मायनों में हर नागरिक आने वाले समय में ऐसी चुनौतियों का मुकाबला बिना भयभीत हुए करे, उसे इसके लिये मानसिक रूप से तैयार किया जाना चाहिए। तकनीकी कौशल, आधुनिक उपकरणों तथा विशेषज्ञ ज्ञान हासिल करके हम चुनौती का मुकाबला कर सकते हैं।रत में प्रति 10 लाख लोगों पर 19 जज हैं। देश में करीब 6 हजार जजों की कमी है। इनमें से करीब 5 हजार जजों की निचली अदालतों में कमी है। कानून मंत्रालय के यह आंकड़े उस दस्तावेज का हिस्सा हैं, जिसे संसद में चर्चा के लिए मार्च में तैयार किया गया था।
दस्तावेज कहता है कि अधीनस्थ अदालतों में 5748 न्यायिक अधिकारियों की कमी है और 24 उच्च न्यायालयों में 406 रिक्तियां हैं। निचली अदालतों में फिलहाल 16,726 न्यायिक अधिकारी हैं, जबकि वहां 22474 न्यायिक अधिकारी होने चाहिए थे। उच्च न्यायालयों में जजों की मान्य संख्या 1079 हैं, जबकि वहां मात्र 673 जज हैं। सुप्रीमकोर्ट में जजों की स्वीकृत संख्या 31 है और वहां 6 रिक्तियां हैं। ऐसे में, सुप्रीमकोर्ट, उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में जजों के 6160 पद खाली हैं। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हाल ही में 24 उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से निचली अदालतों में न्यायायिक अधिकारियों की नियुक्ति में तेजी लाने की अपील की थी।
1987 की सिफारिशों पर अमल नहीं
जजों की संख्या और जनसंख्या के अनुपात पर अप्रैल, 2016 में तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने तीखी टिप्पणी की थी। उन्होंने मुकदमों के पहाड़ से निबटने के लिए जजों की संख्या 21 हजार से बढ़ाकर 40 हजार करने में सरकार की निष्क्रियता पर अफसोस प्रकट किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में कहा था कि आप सारा बोझ न्यायपालिका पर नहीं डाल सकते। उन्होंने कहा था कि 1987 में जब विधि आयोग ने प्रति 10 लाख लोगों पर जजों की संख्या 10 से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी, तब से अबतक कुछ भी आगे नहीं बढ़ा है।

Tuesday, August 28, 2018

रिजर्व की डेडलाइन ख़त्म, 70 बड़ी कंपनियों के भविष्य पर सवाल

क्या देश में बिजली की समस्या खड़ी होने वाली है? क्या अडानी, आर कॉम, पुंज लॉयड जैसी देश की 70 बड़ी कंपनियों पर दिवालिया होने का ख़तरा मंडरा रहा है?
यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि इन कंपनियों को दी गई 180 दिनों की मियाद आज यानी 27 अगस्त को समाप्त हो रही है.
दरअसल, रिजर्व बैंक ने फरवरी 2018 में एक सर्कुलर जारी कर यह स्पष्ट कर दिया था कि यदि कॉर्पोरेट घराने कर्ज़ को चुकाने में एक दिन की भी देरी करते हैं तो उसे डिफॉल्टर मान कर उनके कर्ज़ ली गई रकम को एनपीए घोषित कर दिया जाएगा. तकनीकी रूप से इसे 'वन डे डिफॉल्ट नॉर्म' कहा गया और 1 मार्च से लागू भी कर दिया गया.
सर्कुलर के मुताबिक बैंकों को ऐसे सभी पिछले मामलों को सुलझाने के लिए 1 मार्च 2018 से 180 दिनों का वक्त दिया गया था जो आज ख़त्म हो रहा है.
इस दौरान कंपनियों और बैंकों के बीच जो मामले नहीं सुलझे उन सभी कंपनियों के खातों को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
इस पूरे मामले का भारतीय भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? इस पर बीबीसी संवाददाता अभिजीत श्रीवास्तव ने आर्थिक मामलों के जानकार परंजॉय गुहा ठाकुरता से बात की.
पावर कंपनियां रिजर्व बैंक के इस सर्कुलर को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट गईं जहां इस पर मामले की सुनवाई हो रही है.
परंजॉय कहते हैं, "अब कंपनियों ने केंद्र सरकार को लॉक आउट की धमकी दे दी है. कंपनियों की स्थिति कई कारणों से ख़राब हो जाती है जिसकी वजह से ये बैंकों से लिए कर्ज़ नहीं लौटा पाते. केवल कंपनी का मैनेजमेंट इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं होते. सरकारी नीतियां बदल जाती हैं. बिजली की क़ीमत होना चाहिए इसे तय करने में भी जटिल समस्याएं हो जाती हैं. कोयला नहीं मिलने की समस्या भी है. अगर बिजली के उत्पादन पर असर पड़ा तो देश में बिजली की समस्या भी खड़ी हो सकती है."
ऑल इंडिया बैंक ऑफ़िसर्स कन्फेडरेशन का इस सर्कुलर के बारे में कहना है कि इस प्रावधान से एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा और इससे बैंकों के वजूद पर ख़तरा आ जाएगा.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बैंक कुल 3500 अरब रुपये के करीब 70 एनपीए खातों को दिवालिया कार्यवाही के लिए भेज सकते हैं.
पावर सेक्टर के अलावा जो बड़ी कंपनियां इस सूची में हैं उनमें अडानी समूह की बड़ी कंपनियां, अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस, रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग पुंज लॉयड, बजाज हिंदुस्तान, ऊषा मार्टिन, गीतांजली जेम्स (इसके प्रमोटर मेहुल चोकसी हैं) जैसी कंपनियां शामिल हैं.
अब अगर एक साथ देश की कई बड़ी कंपनियों पर दिवालिया होने का ख़तरा मंडरा रहा है तो निश्चित ही देश की अर्थव्यवस्था पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा और शेयर बाज़ार के धराशायी होने की भी तीव्र संभावना बनती है.
परंजॉय कहते हैं, "हालांकि, अभी बैंकों के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की बैठक होने वाली है जिसमें इस पूरी मसले पर विस्तार से चर्चा होगी और इस बात की पूरी उम्मीद है कि बैंक नहीं नहीं चाहेंगे कि मामला एनसीएलटी के पास जाए लेकिन इस पर रिजर्व बैंक क्या रुख़ अपनाएगा यह देखने वाली बात होगी."
एनपीए समझने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि बैंक काम कैसे करते हैं. इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मसलन बैंक में अगर 100 रुपये जमा है तो उसमें से 4 रुपये (CRR) रिज़र्व बैंक के पास रखा जाता है, साढ़े 19 रुपये (अभी एसएलआर 19.5 प्रतिशत है) बॉन्ड्स या गोल्ड के रूप में रखना होता है.
बाक़ी बचे हुए साढ़े 76 रुपयों को बैंक कर्ज़ के रूप में दे सकता है. इनसे मिले ब्याज से वो अपने ग्राहकों को उनके जमा पर ब्याज का भुगतान करता है और बचा हुआ हिस्सा बैंक का मुनाफ़ा होता है.
रिज़र्व बैंक के अनुसार बैंकों को अगर किसी परिसंपत्ति (एसेट्स) यानी कर्ज़ से ब्याज आय मिलनी बंद हो जाती है तो उसे एनपीए माना जाता है. बैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर 90 दिनों तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा.
सीधे शब्दों में एनपीए वो राशि है, जिसे बैंक मान लेता है कि कर्ज़दार से वापस नहीं मिल सकेगी.

Friday, August 17, 2018

守护水泥森林中的鸟语花香

北京大学校园深处的偏僻一隅,湖光掩映,落叶缤纷, 翠柏无声,这里就是山水自然保护中心的所在地。这家非政府组织由知名环保人士吕植博士创办,她提出了一项大胆的计划,想要改变中国的城市保护方法。

吕博士正在积极奔走,呼吁将这座历史悠久的大学校园列为法定自然保护区。如果她的这一目标达成的话,北大校园将成为中国首个此类保护区,从而使其免受城市开发和农药使用的影响。 这一举措将使生活在校园内的200多种鸟类获益,其中包括鸳鸯和一些受保护的猫头鹰,以及生活在未名湖水系及树木上的其他野生动物。

据吕博士介绍,“北大校园面积只有一平方公里,但其中树木、自然植被和池塘占了近40%。一些濒危鸟类已经将这里当成了栖息地,”她还补充说:

“鸟类对于人类的发展和生存空间的缩小有着更强的耐受性,这就是为什么你仍然能看到很多鸟类聚集区。你只需要增加一个小池塘,第二天鸟儿就会飞来,”

“我们希望借助这个校园和这所大学的影响力做一项案例研究,以证明掌握正确的方法对保护野生动物的效果将会产生怎样的影响。”前,濒危鸟类聚集的地区中,只有2%是自然保护区 ,且多数位于中国西部或更偏远的地区。而在人口更密集的东部地区也生存着许多种类的鸟类。

除了森林砍伐之外,对濒危鸟类构成威胁的其他因素还包括以鸟类入药和食用、偷猎,以及近来的线上销售。

鸟类数量减少

“20年前黄胸鹀数量非常多,” 张亦默解释道。“传统观念认为这种鸟味道鲜美,还可以壮阳。虽然已禁止狩猎和贸易,但在黑市上仍然很受欢迎且价格相当昂贵。据估计,在过去的11年里,这种鸟的数量减少了80%左右。”

去年,活动人士称,尽管中国法律禁止未经许可捕猎任何野生鸟类,但在淘宝上仍然可以买到黄胸鹀。环境保护组织“北京观鸟”收集了他们认为存在违法行为的链接100余处,有些是销售鸟类,有些则是贩卖偷猎设备。阿里巴巴称其在10月份移除了这些链接,并正在进行“程序审查”。国家也出台了一些保护鸟类的举措,如去年修订了1989年出台的《野生动物保护法》。政府还在不断推行“海绵城市”政策,倡导在城市建设更多的湿地和天然灌木林,以应对洪水风险和改善环境。

此外,中国国家海洋局1月份宣布,将遏制滨海湿地的商业开发,拆除或关闭所有破坏环境的非法土地开发项目。此外还表示,为了保护生态,将对5300万公顷的湿地进行保护,使其免受开发的威胁。

观鸟风尚的正反面

同时,中国的民间保护运动和“公民科学”(公众自发进行的科学研究)也在蓬勃发展。据张亦默介绍,致力于环境保护的非政府组织数量已近3500个,而且还在快速增长。山水中心推出的《中国自然观察报告》中大部分数据都是由所谓的公民科学家整理的。

“全国各城市的观鸟团队数量在不断增加,”保尔森基金会研究所保护项目副主任石建斌博士说。

“志愿者不仅帮助识别鸟类,还介绍鸟类及其重要的生态意义等相关知识。许多参与者都是优秀的鸟类鉴定专家,他们的记录为我们了解鸟类种群数量和分布做出了宝贵贡献,这些知识无疑将有益于鸟类的保护。”

“国际鸟盟”已在中国成立了20多个观鸟团,而志愿组织也在吸引越来越多的“粉丝”,如“全国拆网协作中心”这样的致力于拆除偷猎者架设的捕鸟网的组织。不过即使这些组织初衷是好的,也需要一个成长学习的过程。

“越来越多的摄影者开始在都市中心拍摄鸟儿的照片,但我观察到许多摄影者的行为对鸟类本身是有害的,” 石博士补充说。

“比如,他们可能会离鸟太近,从而干扰或扰乱了鸟类的正常行为,尤其是繁殖和哺育等行为;或者有人使用人造诱饵来吸引鸟类,这甚至可能会导致针对这些鸟类的非法捕猎。”

吕植表示,有些学校开始设置了自然教育课程,她注意到了北京市民对北大校园里的野生动物越来越感兴趣,因为即便他们身处在大城市,也同样渴望重回大自然。

“很多城市也不断为公民创造更多的公共绿色空间,但要定义绿色空间的“好坏”仍需要一些科学的论证,”吕植说。“如果不打农药,草坪可能会不太好看,植物的树叶上也会有虫眼,但它却是一个更理想的栖息地。这就需要将生态理念完整地纳入城市地区的绿地管理中。干枯的叶子可以为昆虫提供重要的栖息地,而昆虫又是鸟类的食物;可是在城市中,为了保持环境的整洁,落叶通常都会被清理掉。

Friday, August 10, 2018

मैंने सड़क पर मरे कुत्ते को देख कर नशा करना छोड़ दिया

मैं अपने डेढ़ साल के बेटे के सामने ब्राउन शुगर लिया करता था. यहां तक कि मैं उसके नाम पर लोगों से भीख में पैसे मांगा करता था."
कभी ड्रग्स के आदी रहे तुषार नाथु उन दिनों में खो गए जब वो इसकी लत में डूबे हुए थे.
18 साल की उम्र में तुषार को ड्रग्स की लत लगी थी और वो चरस, भांग, अफ़ीम, गांजा, ब्राउन शुगर, हर तरह का नशा किया करते थे.
वो बताते हैं, "आख़िर में मेरी मां ने आत्महत्या की कोशिश की. मेरी पत्नी की शिकायत पर अंतिम उपाय के रूप में मुझे जेल में भी रखा गया था."
उन्हें मानसिक रोगियों के अस्पताल भेजा गया और पुनर्वास केंद्र में भी रखा गया, लेकिन बाहर निकलते ही वो एक बार फिर नशे की जाल में जकड़ गए.
"अड़ियल प्रकृति और अस्थिर रवैये के कारण मैं इसके बिना जीवित नहीं रह सकता, मैं पूरी तरह से इसका आदी हो चुका हूं."
ड्रग्स की लत से जुड़ी अपने विचारों पर जब एक महिला युवा समाजसेवी ने हमें बताया तो हम नागपुर के एक पुनर्वास केंद्र में तुषार से मिले.
BBCShe कार्यक्रम में चर्चा के दौरान इस महिला समाजसेवी ने युवाओं में ड्रग्स की लत विषय पर चिंता व्यक्त की और कहा कि मीडिया को इस मुद्दे पर और अधिक रिपोर्ट करने की ज़रूरत है.
भारत में पंजाब के युवाओं के ड्रग्स की लत की चर्चा इतनी हुई कि बॉलीवुड में उस पर फ़िल्म तक बन गई.
लेकिन महाराष्ट्र के आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं.
वास्तव में, ड्रग्स से जुड़ी आत्महत्याओं की सूची में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है.
2014 में भारत में ड्रग्स से जुड़ी 3,647 मामले सामने आए, इनमें से अकेले महाराष्ट्र में 1,372 आत्महत्याएं हुईं.
552 मामलों के साथ तमिलनाडु दूसरे, 475 आत्महत्याओं के साथ केरल तीसरे और 38 के साथ पंजाब चौथे स्थान पर रहा.
पिछले साल जुलाई में, नेशनल क्राइम ब्यूरो (एनसीआरबी) के इन आंकड़ों को देश के सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री विजय सांपला ने राज्यसभा में सदन के पटल पर रखा.
इसके अनुसार, देश में की गई 37 फ़ीसदी आत्महत्याओं की रिपोर्ट महाराष्ट्र दर्ज की गईं.
समाजसेवी और सलाहकारों के अनुसार देश में लोग कई तरह की नशीली चीज़ों के आदी हैं- इनमें भांग, गांजा, चरस, अफ़ीम, ब्राउन शुगर, तारपीन जैसी रासायनिक वस्तुएं, वाइटनर और यहां तक कि नेल पॉलिश और पेट्रोल जैसी चीज़ों की लत शामिल हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से कई ड्रग्स का पता लगाना मुश्किल है क्योंकि वे शराब की तरह गंध नहीं छोड़ते.
महिलाओं में ऐसी किसी लत की सीमाओं का पता लगाना और भी मुश्किल है क्योंकि बड़ी संख्या में ऐसे मामलों की रिपोर्ट नहीं होती.
मुक्तांगण पुनर्वास केंद्र की निदेशक मुक्ता पुणताम्बेकर ने इसके मूल कारणों की ओर इशारा किया.
वो कहती हैं, "महिलाओं का ड्रग्स लेने की आदत को कलंक के रूप में देखा जाता है. लोग इसे छिपाने की कोशिश करते हैं और उन्हें डॉक्टरों के पास नहीं ले जाते."
नागपुर के मेडिकल मनोवैज्ञानिक और सलाहकार डॉ. स्वाति धर्माधिकारी कहती हैं, "महिलाओं को पुरुषों की तरह इलाज नहीं मिलता. महिलाओं के लिए बहुत ही कम पुनर्वास केंद्र हैं और वो आसानी से शोषण की शिकार हो जाती हैं."
महाराष्ट्र में सरकारी सहायता से चलने वाले पुनर्वास केंद्रों की संख्या सबसे अधिक है.
भारत के कुल 435 ड्रग्स पुनर्वास केंद्रों में से 69 महाराष्ट्र में हैं. इनमें से केवल कुछ ही महिलाओं के लिए हैं.
मुक्तांगण के क्षेत्रीय संयोजक संजय भगत सवाल करते हैं, "अगर कोई समाजसेवी किसी ड्रग्स लेने वाली महिला की पहचान करता है, तो वो उसे कहां ले जाए."
हालांकि केवल महिलाओं के लिए केंद्र बनाना भी मुश्किल काम है क्योंकि प्रशिक्षित महिलाओं की कमी है.
2009 में मुक्तांगण ने महिलाओं के लिए 15 बिस्तरों वाले केंद्र 'निशिगन्ध' की शुरुआत की थी.
मुक्ता पुणतांबेकर कहती हैं, "यहां सभी स्टाफ महिलाएं हैं जिससे महिला मरीजों को अजीब न लगे."
वो कहती हैं, "हमारे यहां अपने पिता, पति और बेटों की नशे की लत से बुरी तरह प्रभावित महिलाओं के लिए एक सपोर्ट ग्रुप है. हम उन्हें यहां पेशेवर डॉक्टरों और सलाहकारों की मदद से मरीजों की देखभाल करने का प्रशिक्षण देते हैं. और वे डॉक्टरों और सलाहकारों की सहायक के रूप में यहां काम करती हैं."
इस सम्मिलित प्रयास से नशे की लत से मुक्ति पा चुकी कुछ महिलाओं को नौकरी का एक अवसर भी मिलता है.
लेकिन वास्तविक समस्या यह है कि कितनी संख्या में महिलाएं ड्रग्स की समस्या से पीड़ित हैं इसकी कोई व्यापक जानकारी उपलब्ध नहीं है. बाद से भारत में ड्रग्स की लत के जुड़ा कोई व्यापक सर्वेक्षण नहीं है.
2016 में केंद्र सरकार ने देश में "ड्रग्स की लत के फैलाव, पैटर्न और ट्रेंड पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण' की घोषणा भी की. इसके दायरे में 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सभी महिलाएं और ट्रांसजेंडर सभी आते हैं, जिनकी संख्या पिछले सर्वे में नगण्य है.
इसके रिपोर्ट की इसी साल अक्तूबर में आने की संभावना है.
राष्ट्रीय सर्वे परियोजना के लिए डेटा संग्रह कर रही इकाई का नेतृत्व कर रहे मुक्तगण के संजय भगत कहते हैं, "लेकिन इसके नतीज विशेषज्ञों को भी परेशान कर रहे हैं."
वो कहते हैं, "अब तक हमने जो मिला वो बहुत ही विचलित करने वाला है. यह बहुत बड़ी जटिल समस्या के छोटे हिस्से के जितना है. ड्रग्स की लत वालों की संख्या बढ़ रही है और बड़ी संख्या में लोग कम उम्र में इसके आदी होते जा रहे हैं."
जब इसकी अंतिम रिपोर्ट आएगी तभी हम भारत में इस समस्या की वास्तविक चिंताजनक स्थिति के बारे में जान सकेंगे.
मुक्ता कहती हैं, "इसका सामना करने का एकमात्र तरीका यह है कि हम लत की समस्या के बारे में जागरूकता पैदा करें और लोगों को इसके खतरे से दूर करने की कोशिश करें."

Monday, July 23, 2018

शेर की पूंछ से ना खेलें डोनल्ड ट्रंप, पछतावा होगा: ईरान

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को ईरान से 'शत्रुता' भरी नीतियों के लिए कड़ी चेतावनी दी है.राष्ट्रपति हसन रूहानी ने ट्रंप के चेतावनी देते हुए कहा, ''मिस्टर ट्रंप, आप शेर की पूंछ से मत खेलिए, क्योंकि इससे केवल पछतावा ही होगा.''ईरानी अख़बार तेहरान टाइम्स के मुताबिक़ रूहानी ने ईरानी राजनयिकों को संबोधित करते हुए कहा, ''अमरीकी इस बात को पूरी तरह से समझते हैं कि ईरान के साथ शांति सभी तरह की शांति की जननी है और इसी तरह ईरान के साथ युद्ध सभी तरह के युद्ध की जननी है. मैं किसी को धमकी नहीं दे रहा, लेकिन कोई हमें डरा या धमका नहीं सकता.''

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को ईरान से 'शत्रुता' भरी नीतियों के लिए कड़ी चेतावनी दी है.राष्ट्रपति हसन रूहानी ने ट्रंप के चेतावनी देते हुए कहा, ''मिस्टर ट्रंप, आप शेर की पूंछ से मत खेलिए, क्योंकि इससे केवल पछतावा ही होगा.''ईरानी अख़बार तेहरान टाइम्स के मुताबिक़ रूहानी ने ईरानी राजनयिकों को संबोधित करते हुए कहा, ''अमरीकी इस बात को पूरी तरह से समझते हैं कि ईरान के साथ शांति सभी तरह की शांति की जननी है और इसी तरह ईरान के साथ युद्ध सभी तरह के युद्ध की जननी है. मैं किसी को धमकी नहीं दे रहा, लेकिन कोई हमें डरा या धमका नहीं सकता.''

ईरान की इस धमकी पर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्वीट कर राष्ट्रपति रूहानी को आगाह किया है.
ट्रंप ने ट्वीट कर कहा, ''ईरानी राष्ट्रपति रूहानी के लिए: अमरीका को कभी दोबारा धमकी मत देना. अगर आपने ऐसा किया तो ऐसे परिणाम भुगतने होंगे जो इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ है. अमरीका अब वो देश नहीं रहा जो आपकी धमकी को सुन ले. इसलिए सावधान!''

रूहानी ने कहा, ''जो थोड़ी बहुत भी राजनीति समझता है वो यह नहीं कह सकता कि ईरान के तेल निर्यात को रोक देगा. हमलोगों का इतिहास रहा है कि इस इलाक़े के समुद्री मार्ग में हम शांति के ध्वज वाहक रहे हैं.''ईरान होरमुज़ समुद्री मार्ग बंद करने की बात कह रहा है. इस मार्ग पर ईरान का नियंत्रण है. इससे पहले ईरान के इस्लामिक रिवॉल्युशन के नेता अयोतोल्लाह ख़मेनई ने राष्ट्रपति रूहानी का अमरीका के ख़िलाफ़ उनकी नीतियों का समर्थन किया था. इसके बाद ही राष्ट्रपति रूहानी ने अमरीका को यह चेतावनी दी है.

राष्ट्रपति रूहानी ने कहा, ''अगर ईरान अपना तेल निर्यात नहीं कर पाएगा तो कोई भी इस इलाक़े का देश तेल निर्यात नहीं कर पाएगा. ट्रंप अपने हितों के लिए पूरी दुनिया को जोख़िम में डालना चाहते हैं. इससे अच्छा कोई और वक़्त यह बताने के लिए नहीं आएगा कि अमरीका की नीतियां किस क़दर मुसलमान विरोधी हैं.''

रूहानी ने कहा, ''मैं अब आसानी से पूरी दुनिया को कह सकता हूं कि अमरीकी शांति को लेकर प्रतिबद्ध नहीं हैं. वो अंतरराष्ट्रीय संधियों और संगठनों को लेकर भी ईमानदार नहीं हैं. हमने जिस परमाणु समझौते पर 2015 में दुनिया के छह देशों के साथ हस्ताक्षर किया था उसे अमरीका ने तबाह कर दिया.''रूहानी ने यह भी कहा कि अगर सऊदी अरब, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात अपनी ज़िद छोड़ दें तो वो दोस्ती के लिए तैयार हैं.

ईरान में इस बात पर सहमति बनती दिख रही है कि अगर ईरान के तेल निर्यात को रोका जाता है तो खाड़ी के बाक़ी देशों के तेल निर्यात को भी रोका जाए.अमरीका पूरी दुनिया के उन देशों पर दबाव बना रहा है जो ईरान से तेल आयात करते हैं. अमरीका का कहना है कि जो देश ईरान से तेल ख़रीदते हैं वो किसी और देश से ख़रीदें.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स से ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने कहा है कि ट्रंप प्रशासन ईरान में हमले की योजना बना रहा है.

Thursday, May 10, 2018

Трамп назвал дату и место встречи с Ким Чен Ыном

Встреча президента США Дональда Трампа и главы КНДР Ким Чен Ына пройдёт 12 июня в Сингапуре. Об этом сообщил сам хозяин Белого дома в своём Twitter. Он также отметил, что обе стороны постараются «сделать этот момент особенным для мира во всём мире». Между тем эксперты по-разному оценивают перспективы переговоров. Специалисты указывают на то, что оба лидера будут считать данную встречу своей заслугой и добиваться уступок.
О том, что встреча лидеров США и КНДР, по всей видимости, пройдёт на территории островного города-государства, ещё накануне сообщил телеканал CNN со ссылкой на информированный источник.
«Представителей администрации проинструктировали продвигать планы проведения исторического саммита между президентом Дональдом Трампом и северокорейским лидером Ким Чен Ыном в Сингапуре», — отмечалось в материале.
Американская сторона занималась активным поиском площадки для проведения переговоров между Трампом и Ким Чен Ыном после того, как хозяин Белого дома исключил возможность встречи в демилитаризованной зоне Корейского полуострова, несмотря на то что в конце апреля он говорил, что не прочь встретиться с северокорейским лидером в пограничном пункте Пханмунджом.
При этом за несколько часов до объявления точного места и времени встречи Трамп отметил, что многого ждёт от грядущих переговоров.
Президент Соединённых Штатов Дональд Трамп заявил, что его встреча с северокорейским лидером Ким Чен Ыном состоится 12 июня. По словам хозяина Белого дома, переговоры пройдут в Сингапуре.
«Долгожданная встреча между мной и Ким Чен Ыном пройдёт в Сингапуре 12 июня. Мы оба постараемся сделать этот момент особенным для мира во всём мире!» — написал Трамп в Twitter.